Limitations is in your mind by Rger bannister book Summary in Hindi
ये 6 मई, 1954 की बात है जब किसी मिडिल डिस्टेंस रनर ने पहली बार 3 मिनट और 59.4 सेकंड्स में अंडर 4 मिनट माईल रेस जीत कर इतिहास रचा था.
आप शायद नहीं जानते होंगे लेकिन 1950 के दौर में बहुत से डॉक्टर्स, एक्ससेसाइज़ एक्सपर्ट और फिज़ियोलोजिस्ट का ये मानना था कि किसी भी इंसान के लिए इतनी तेज़ रफ़्तार से भाग पाना एक तरह से नामुमकिन चीज़ है. मगर इस सबके बावजूद एक इंसान ऐसा था जिसने इस नामुमकिन बात को मुमकिन कर दिखाया था. क्योंकि उसने बड़ी गहराई से अपने दिमाग में नामुमकिन को मुमकिन बनाने का ख्याल बैठा लिया था और उसकी सिर्फ एक रेस ने सभी एक्सपर्ट रियलिटी और तमाम तयशुदा मान्यताओं को तोड़ मरोड़ कर रख दिया.
1940 में माईल रिकॉर्ड जो कि 4 मिनट और 1 सेकंड का था, पूरे 9 सालो तक कायम रहा जिसका सीधा एक मतलब ये भी था कि हज़ारो सदियों से जबसे इंसान का इस धरती पर आगाज हुआ है, उससे पहले कभी भी कोई मर्द या औरत इस नामुमकिन लगने वाली 4 मिनट की माईल बाधा को पार कर पाया हो.
तो आखिर ये क्या था ? इंसानी दिमाग की उलझन या कोई ज़ज्बाती परेशानी जो इसे लगभग नामुमकिन बना रही थी. या फिर ये एक ऐसी बात थी जो बिलकुल भी इंसानी ताकत से बाहर की बात थी जैसा की एक्सपर्ट का मानना था.
आईये देखते है कि किस तरह रॉजर बनिस्टर ने पूरी दुनिया को हैरान करके लोगो को सोचने पर मजबूर कर दिया था कि नामुमकिन में भी मुमकिन शब्द छुपा है. इससे दो साल पहले की बात है. सन,1952 में हेलसिंकी ओलंपिक्स में बनिस्टर ने 1500 मीटर का ब्रिटिश रिकॉर्ड बनाया था. और ये जीत के लिए काफी नहीं था, उसने ये रेस चौथे स्थान पर ख़त्म की थी.
2 मई,1953 में अपने माईल रिकॉर्ड से एक साल पहले रॉजर ने 4 मिनट माईल का रिकॉर्ड बनाने की पूरी कोशीश की थी लेकिन वो कामयाब नही हुए. अपनी पूरी ताकत से भागने के बावजूद उन्होंने 4 मिनट 36 सेकंड्स का समय लिया.
अपनी पूरी कोशिश के बाद भी अपनी हार के बारे में उन्होंने कहा” इस रेस के बाद मुझे लगता है कि 4 मिनट की माईल कोई बहुत बड़ी चीज़ नहीं है, और मै अभी हार नहीं मानने वाला हूँ,
रॉजर का मानना था कि हार की वजह से उनकी जीत का इरादा और भी मज़बूत हुआ है. दुनिया का पहला 4 माईल जीत का दावेदार बनने का उनका ये इरादा, ये लक्ष्य, इनाम की ख्वाहिश ही वो चीजे थी जिन्होंने उनका हौसला बनाये रखा और प्रेरित किया और भी ज्यादा मेहनत के साथ ट्रेनिंग करने के लिए .
बहुत से लोग ये बात ना जानते हो मगर 1946 में रॉजर बनिस्टर ऑक्सफ़ोर्ड में अपनी मेडिकल स्कूल की पढाई कर रहे थे जहाँ उन्हें स्कोलरशिप मिली थी. तकरीबन हर रोज़ वे अपने लंच टाईम के दौरान 3 पेंस देकर पार्क के अन्दर जाया करते थे जो कि उनके हॉस्पिटल के पास ही था. इस पार्क में जाकर रॉजर दौड़ने की प्रैक्टिस किया करते थे. इस वक्त तक वो इतने काबिल रनर नहीं बने थे और उनकी चाल एक तरह से बेढंगी कही जा सकती थी. ऑक्सफ़ोर्ड की तीसरे नंबर टीम ट्रैक में वो बमुश्किल जगह बना पाए थे.
22 मार्च, 1947 में रॉजर ऑक्सफ़ोर्ड की पहली टीम में माईल रेस में बतौर पेसर दौड़ रहे थे जिसका मुकाबला केम्ब्रिज से था. और उनका काम एक पेसर के रूप में इतना ही था कि वे भागने वाले खिलाडियों को ट्रैक में रहने में मदद करे. मगर इस रेस में रॉजर ने ना सिर्फ ट्रैक कोर्स की पूरी दूरी तय की बल्कि रेस के स्टोप्पिंग पॉइंटसे 20 यार्ड ज़ादा भाग के पूरी रेस 4 मिनट और 30 सेकंड्स में पूरी करी.
रॉजर अब तक समझ चुके थे कि दौड़ना उन्हें ख़ुशी देता है और वो काफी हद तक अच्छा दौड़ लेते है ये बात जानकर उन्होंने और भी ज्यादा प्रक्टिस करने लगे और तब तक करते रहे जब तक की 7 साल बाद उन्होंने रिकॉर्ड नहीं तोड़ डाला.
इसमें एक रोचक बात ये थी कि उनका ये रिकॉर्ड सिर्फ 46 दिन ही कायम रहा. तब से लेकर कई पुरुष खिलाडियों 4 मिनट माईल बेरियर तोड़ चुके है. आज ये रेस सभी पुरुष खिलाडियों और मिडिल डिस्टेंस रनर के लिए एक स्टैण्डर्ड बन चुकी है. करीब 4500 से भी ज्यादा लोग ये 4 मिनट वाली माईल रेस दौड़ चुके है. हालाँकि इसमें एक नया रिकॉर्ड भी बन चूका है जो 1999 में मोरक्को के हिशाम एल ग्योरोज़ ने 3 मिनट और 43.13 सेकंड्स में बनाया था, बनिस्टर के नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाने के पचपन साल बाद.
यहाँ कुछ बाते है जो हमें रॉजर बनिस्टर की जुबानी समझी.
बनिस्टर ने कहा कि” उसके दिमाग में ऐसा कोई तर्क या लॉजिक नहीं आया जिससे उन्हें ये लगता कि अगर एक माईल को 4 मिनट और 1 सेकंड में दौड़ा जा सकता है तो 3 मिनट और 59 सेकंड्स में क्यों नहीं? रॉजर मेडिसिन और फिजियोलोजी की काफी जानकारी रखते थे और वो ये भी अच्छे से समझते थे कि फिजिकल बेरियर जैसा कुछ भी नहीं है बल्कि जो कुछ हमें रोकता है वो सिर्फ सयिकलोज़िकल बेरियर है.
मै यहाँ आपसे एक सवाल पूछना चाहती हु,
क्या आपके दिमाग में ऐसा कुछ है जो किसी भी बारे में आपको पूरा यकीन दिलाता है फिर भी उसे हासिल कर पाना आपको नामुमकिन लगता है. अगर इस बात को आप और गहराई से सोचे तो मालूम होगा कि ये तो हकीकत और आपके ख्यालो के बीच की एक लड़ाई है. जो कुछ भी है वो तो सिर्फ एक ज़ज्बाती और सैकोलोज़िकल बेरियर है.
रॉजर बेनिस्टर का यही मानना था कि जो बात उन्हें आज नामुमकिन लग रही है कल कोई और उसे मुमकिन कर ही लेगा और उस मुमकिन को हासिल करने वाला पहला इंसान रॉजर खुद बनना चाहते थे. अब इस ख्याल को जेहन में रखकर मै आपसे कहना चाहता हूँ” क्यों नहीं और भी गहराई से अपनी काबिलियत पर गौर करते हो? घिसी पीटी मान्यताओं को एक बार चुनौती देकर तो देखो, आपनी आदतों को बदल कर तो देखो, अपनी सोच को ललकार कर तो देखो. तुमने अपने लिए जिस गोल्ड मैडल का सपना संजोया था उसे हासिल करने से बस यही तुम्हारी सोच तुम्हे रोक रही है. एक बार सोच बदल कर तो देखो.
अब आपकी बारी है कि आप भी अपनी जिंदगी को ऐसा बनाए जैसा की उसे होना चाहिए, किसी मास्टर पीस की तरह मुक्कमल. अपने सपनो को आज से ही पूरा करने में जुट जाए, अपने डर को ही अपना हथियार बना लीजिये.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें